OSI Model और उसके Layers और कार्य
What is OSI Model in Hindi - OSI Model क्या है
जब हम किसी Data को भेजते है तो वह Data Networks से होकर Receiver पास कैसे पहुंचता है यह जानने के लिए हमे OSI Model को जानना जरूरी है।OSI Model जिसका पूरा नाम Open System Interconnection Model है।
इसे सन् 1984 में ISO (International Organization for Standardization द्वारा विकसित किया था।
यह Model 7 Layers से मिलकर बने है और प्रत्येक Layer का अपना अलग अलग कार्य होता है। ये Layers एक साथ मिलकर कार्य करते है इसी कारण हम एक Network से दुसरे Network मे Transmit कर पाते है
OSI Model क्यों महत्त्वपूर्ण है?
OSI Model के आने के पहले एक ही Company के Systems ही आपस मे Communicate कर पाते थे और उनके लिए उनके अपने Protocols होते थे। जैसे IBM का System IBM के System से ही Communicate कर पायेगा अन्य Manufacture के System जैसे Apple या Dell आदि से Communicate नही कर पायेगा।
इस समस्या के समाधान हेतु ISO ने सन 1977 मे एक Committe बुलाई जिसमे यह कहा गया की ऐसा Computer Architecture का निर्माण किया जाए जिसमे दो अलग अलग Venders या Manufacture के Computers आपस मे Communicate कर सके।
इसके फलस्वरूप सन् 1984 मे OSI Model विकसित किया गया जो विभिन्न Architecture वाले Computers या Devices के बीच Communication को Support करने वाला Model था।
Layers of OSI Model in Hindi (OSI मॉडल के लेयर)
OSI Model निम्न 7 Layers से मिलकर बने होते है जिनका अपना विशेष कार्य होता है।
Application Layer (एप्लीकेशन लेयर)
Application Layer में सभी Software जैसे Gmail, Yahoo, Facebook, Twitter, Instagram या अन्य Apps कार्य करते है। इनका कार्य Users को Interface प्रदान करना है।Users Application Layer पर कार्य करता है।
इस Layer मे बहुत सारे उच्च स्तर के Protocols कार्य करते है
जब User Application Layer मे विभिन्न कार्य जैसे Browsing करना, Email भेजना, File Upload या Download करना आदि कार्य करते है। तब Application Layer मे उपस्थित विभिन्न Protocols का प्रयोग करके User की आवश्यकताओ को पूरा किया जाता है।
Function of Application Layer in Hindi (एप्लीकेशन लेयर के कार्य)
1) इस Layer में आप Web browser या Email जैसे Apps का Use करके Network के साथ Interact कर सकते हैं।
2) इसमें यह सुनिश्चित की जाती है कि Data सही format में रहे ताकि दोनों Computers इसे समझ सके।
3) Data को भेजने की पहले यदि इसमें कुछ त्रुटियां हैं तो उसे ठीक की जाती है ताकि Data सही रहे।
4) Network पर File भेजना और प्राप्त करने में मदद करते हैं।
5) Data को भेजने की पहले इसे Secret code में बदलकर इसे सुरक्षित किया जाता है और प्राप्त करने की पहले इसे पुन: सामान्य किया जाता है।
6) इस Layer मे Email आगे भेजने और Store करने की सुविधा दी जाती है।
Presentation Layer(प्रेजेंटेशन लेयर)
Application Layer से जो Data भेजा जाता है वह इसी Layer मे आता है। Presentation Layer मे यह देखा जाता है की Receiver को Data कौन से Format मे भेजा जाय कि वह Data को समझ जाए।इस Layer मे Data की Security से सम्बंधित कार्य जैसे Data का Encryption(Sender side) Decryption(Receiver side) तथा उसकी Size को कम करने हेतु उसे Compress करना ताकि Data Receiver के पास भेजा शीघ्र भेजा जा सके जैसे कार्य इस Layer मे होते है।
Function of Presentation Layer in Hindi (प्रेजेंटेशन लेयर के कार्य)
1) Data को ऐसे Format में बदला जाता है कि दोनों भेजने वाले और प्राप्त करने वाले Devices उस Format को समझ सके।
2) इस Layers मे Data के Bits की संख्या को कम की जाती है या उसे Compress किया जाता है। ताकि उसे तेजी से भेजा जा सके और वह कम Space ले।
3) Data को इस तरीके से बदला जाता है कि उसे प्राप्त करने वाला System उसे आसानी से समझ तथा Process कर सके।
4) जटिल Data को सरल रूप में बदल जाता है ताकि उसे Network पर भेजना आसान हो।
5) Data को एक प्रकार जैसे XML से अन्य प्रकार जैसे JSON में बदला जाता है ताकि उसे विभिन्न Apps द्वारा बेहतर उपयोग किया जाए।
6) अगर हम कोई Sensitive Message भेज रहे है तो उसे इस Layer मे Receiver Side Encrypt किया जाता है ताकि वह Message सुरक्षित रहे।
7) Sender Side इस Encrypted Message को Decrypt किया जाता है ताकि उस Message को समझा जा सके।
Session Layer(सेशन लेयर)
Presentation Layer के बाद Data को Session Layer मे भेजा जाता है इस Layer का कार्य Sender तथा Receiver के बीच एक Connection या Session शुरू करना है तथा यह Session तब तक बना रहेगा जब तक Receiver को पुरा Data प्राप्त न हो जाए।Function of Session Layer in Hindi (सेशन लेयर के कार्य)
1) यह दो Devices के बीच एक link Setup करता है ताकि वह एक दूसरे से बातचीत कर सके।
2) जब तक Devices को Communicate करने की जरूरत रहती है यह Connection चालू रहता है।
3) जब Devices के बीच Communication बंद हो जाता है तब Connection को सुरक्षित तरीके से Close कर दिया जाता है।
4) यह एक ही समय में Devices के बीच कई Session होने की अनुमति देता है।
5) Devices के Communication के दौरान अगर कोई त्रुटि या समस्या हो जाती है तो उसे यह ठीक करता है ताकि Devices के बीच Session सुचारू रूप से चल सके।
6) यह Data transfer के दौरान Checkpoint जोड़ता है, इसलिए यदि कुछ गलत होता है, तो Data फिर से शुरू करने के बजाय अंतिम Checkpoint से जारी रह सकता है।
7) एक समय मे One -way या Two -way या दोनों प्रकार के संवाद के अनुमति देता है।
Transport Layer(ट्रांसपोर्ट लेयर)
Session Layer से प्राप्त Data को Transport Layer पहले छोटे छोटे Segment मे विभाजित करता है। इस Layer मे दो Protocols कार्य करते है TCP (Transmission Control Protocol)तथा UDP(User Datagram Protocol) होते हैं।जब Sender तथा Receiver के बीच Connection स्थापित करके Data भेजना है तब TCP Protocol का प्रयोग किया जाता है। यह एक विश्वशनीय Protocol है।
Data Receiver के पास पहुंचा है या नही पहुंचा है इसकी पूरी जानकारी TCP Protocol द्वारा Sender को दी जाती है। Data UDP Protocol का प्रयोग उस समय किया जाता है जब Sender तथा Receiver के बीच बिना Connection स्थापित किए जल्दी से Data भेजना है।
यह Protocol Data के पहुंचने या न पहुंचने सम्बंधित कोई भी जानकारी Sender को नही भेजती अत: यह अविश्वसनीय Protocol है।
Function of Transport Layer in Hindi (ट्रांसपोर्ट लेयर के कार्य)
1) यह बड़े Messages को भेजने के लिए पहले उसे छोटे टुकड़ों में बांटते हैं और पहुंचने के बाद उसे पुनः एक Message बना देते हैं।
2) यह Computers के बीच Connection को शुरू तथा अंत करते हैं ताकि वे एक दूसरे से बातचीत कर सके।
3) यह Data को कितनी तेजी से भेजा जा रहा है उसका नियंत्रण करते हैं ताकि जो Computer इस Data को प्राप्त कर रहा है उस पर ज्यादा बोझ न हो ।
4) यह जाँचता है कि भेजे गए Data में गलतियाँ हैं या नहीं और यह सुनिश्चित करता है कि अगर त्रुटि थी तो वे ठीक हो गई है।
5) यह सुनिश्चित करता है कि Data को सही ढंग से और एक क्रम में Deliver किया गया है।
6) यह कई Applications को Port numbers का Use करके एक ही Connection Use करने की अनुमति देता है।
7) यह सुनिश्चित करता है कि Data वैसे ही प्राप्त किया गया है जैसा भेजा गया था।
8) यह Layer संयोजनयुक्त और संयोजनहीन दोनो प्रकार की सेवाएं प्रदान करती है।
Network Layer(नेटवर्क लेयर)
Transport Layer के द्वारा Segment form में Data को Network Layer को भेजा जाता है। अब Network Layer का कार्य उस Data को जो Segment Form मे होते है छोटे छोटे Packets मे बदलता है। Network Layer का कार्यभार ज्यादा होता है। यह Layer Sender तथा Receiver के IP Address को Store करके रखता है।यह Layer इस कार्य हेतु भी जिम्मेदार रहता है कि Packets को किस Route से तथा किस तरीके से भेजा जाए कि ये जल्दी से Receiver के पास पहुंचे Router का कार्य भी इसी Layer मे होता है।
Function Of Network Layer in Hindi (नेटवर्क लेयर के कार्य)
1) Network layer, विभिन्न Networks पर Data को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर पर Travel करने के लिए सबसे अच्छा मार्ग ढूंढता है।
2) यह प्रत्येक Device को एक Unique address (IP address) देता है ताकि उसे Network पर पहचाना जा सके।
3) यह Data को Network पर उसके Destination address के आधार पर अगले Stop पर भेजता है।
4) यदि Data packets बहुत बड़ा है तो यह layer उसे छोटे टुकड़ों में बांटते है तथा अंत में उसे पुनः Packets में बदल देता है।
5) यदि Data भेजते समय कुछ समस्याएं या गलतियां हो तो उसकी जांच करता है तथा पुनः गुमे या टूटे हुए Packets भेजने के लिए कहता है।
6) यह विभिन्न नेटवर्क को आपस में संवाद करने तथा Data shate करने की अनुमति देता है।
7) यह layer महत्वपूर्ण Data को प्राथमिकता देता है ताकि उसे पहले भेजा जा सके तथा जो कम महत्वपूर्ण है वह बाद में भेजा जाए।
Data Link Layer(डाटा लिंक लेयर)
Network Layer से प्राप्त Data, Packets को इस layer में Frame के Form मे बदलना है। इस Layer का मुख्य 3 कार्य होता है।i) यह देखना कि Data मे किसी प्रकार की Error तो नही है अगर है तो उसे हटाना और उसे आगे भेजना।
ii) Sender तथा Receiver के बीच Data के Flow को नियंत्रित करना जैसे Sender Data को मान लीजिए Sender Data को जिस तेजी से भेज रहा है उस तेजी से Receiver पूरे Data को प्राप्त करने मे असमर्थ है जिससे Traffic, Load बढ़ जायेगा और Data के खराब होने, खो जाने का भी खतरा बना रहेगा।
उस स्थिति मे Data Link Layer Sender तथा Receiver के बीच Data Transfer की Speed को इस प्रकार Maintain रखता है ताकि Data Receiver के पास पहुंच सके।
यह Layer Physical Addressing के लिए भी जिम्मेदार होता है अर्थात एक Network कई Computer से जुड़ा हुआ है अब किसी एक Computer मे Data भेजना है तब Data Link Layer उसका Physical Address भी निकालता है।
Function of Data Link Layer in Hindi (डाटा लिंक लेयर के कार्य)
1) Data link layer, Data को frame में बांटता है प्रत्येक Frame की विशेष शुरुआत और अंत होती है अतः Devices जानता है कि Data कहां से शुरू तथा खत्म होता है।
2) यह प्रत्येक Device को एक Unique address (MAC address) प्रदान करता है ताकि एक ही Network में Devices एक दूसरे को पहचान सके।
3) यह Layer, frames जिसे भेजा जा रहा है में गलतियों की जांच करता है और यह सुनिश्चित करता है कि Data क्षतिग्रस्त नहीं है।
4) यदि कुछ गलतियां पाई जाती है तो यह layer उसमें कुछ सुधार करता है या Data को पुन: भेजने के लिए कहता है।
5) यह layer निर्णय करता है कि कितने Devices एक Network media जैसे Cables या Wi-Fi का Share कर सकते हैं।
6) यह एक ही Local network पर Connection को शुरू तथा अंत कर सकते हैं।
7) इस Layer मे Data के प्रवाह को Control किया जाता है ताकि Receiver के लिए Data Recive करने मे कोई समस्या न हो।
Physical Layer(फिजिकल लेयर)
Data Link Layer से प्राप्त Frames को Physical Layer Bits(0 या 1)के form अर्थात Digital form मे Convert करता है। इस Layer मे Data भेजने हेतु बहुत से Devices जैसे Switch, Hub होते है।Physical Layer यह निर्णय लेता है कि Data Wireless भेजना है या Wire के द्वारा भेजना है। अब Physical Layer Data को जो के Bits form में है Sender के पास भेज देता है।
अब जो Process Sender Side हुआ है उसका उल्टा Receiver Side होगा अर्थात Physical Layer से शुरू होकर Application Layer जाएगा।
Function of Physical Layer in Hindi (फिजिकल लेयर के कार्य)
1) इस Layer मे यह निर्णय लिया जाता है कि कौन सा Transmission Media(Cable, Coaxial, Fibre Optic) Use किया जाना है।
2) इस layer में Data को Bits (0s या 1s) के रूप में भेजते हैं।Data को कितने Bits per Second(Data Rate) मे भेजना है का निर्धारण इस Layer मे किया जाता है।
3) Sending Side से भेजे जा रहे Bits का का क्रम, Receiver Side के Bits के क्रम के समान होना है यह कार्य भी इस Layer मे किया जाता है।
4) यह layer नियंत्रित करता है कि Bits को कितनी तेजी से भेजा जा रहा है ताकि दोनों Devices समान गति से Communicate कर सके।
5) मुख्य त्रुटि का पता ऊपर के layer पर लगाया जाता है, तब भी यह layer कमजोर सिग्नल या शोर जैसी कुछ समस्याओं का पता लगा सकती है।
6) Network का कौन सा Topology जैसे Bus, Star, Mesh, Ring आदि मे कौन सा Use करना है यह भी इसी Layer मे बताया जाता है।
7) Transmission Mode जैसे Simplex ,Half duplex, Full duplex कौन सा होगा यह इस Layer मे बताया जाता है।
OSI Model के 7 Layers को याद रखने के तरीके
Physical Please
Data Link Do
Network Not
Transport Throw
Session Layer Sauce
Presentation Pasta
Application Away
Use of OSI Model in Hindi (OSI मॉडल के उपयोग)
OSI Model का Use निम्न कार्यों के लिए किया जाता है
Network Design
OSI Model का उपयोग करके नेटवर्क डिजाइनर Network के प्रत्येक Layer में कार्य करने वाले अलग-अलग फंक्शन को, Network के Components आपस में कैसे Communicate करते है, Network में Data कैसे Flow होते है जैसे कार्यों को समझ पता है ताकि वह एक प्रभावशाली नेटवर्क का निर्माण कर सकें
Network Troubleshooting
OSI Model एक Troubleshooting Tool के समान कार्य करता है जिसका प्रयोग करके यह जाना जा सकता है कि Network मे कहां पर समस्या आई है प्रत्येक Layers को Check कर Network Administrator Network Problem को समझ लेता है ताकि उसके समाधान हेतु आवश्यक कदम उठा सके
Education and Training Design
OSI Model का प्रयोग करके Netwotk Course वाले Students को जटिल Network को सरलता से समझाया जा सकता है OSI Model Network के प्रत्येक Layers को और ये एल कैसे आपस मे Interact करते है जैसी बाते Network को समझना आसान बना देता है
Protocol Design
OSI Model Network Protocol Design करने के लिए Reference Model है।
OSI के Model के Advantage और Disadvantage
OSI Model के निम्न Advantage तथा Disadvantage है।
OSI Model के Advantage (OSI मॉडल के फायदे)
1) OSI Model Network Communication को छोटे छोटे भागों मे विभाजित करता है जिससे Network को समझने की जटिलता कम हो जाती है।2) OSI Model विभिन्न प्रकार के Networks, Software, Hardware को एक दुसरे से Communicate करने की अनुमति देता है।
3) OSI Model के एक Layer मे होने वाला परिवर्तन दुसरे Layer को प्रभावित नही करता ।
4) यदि OSI Model के किसी एक Component को Update या Modify किया जा रहा है तो अन्य Components इस कार्य से प्रभावित नही होते और न ही पूरे Protocol को पुन: Rewrite करने की जरुरत होगी।
5) यह Connection less तथा Conection oriented दोनो सेवाएं देता है
6) तकनीकी बदलाव के साथ नए Protocols को पुराने से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
7) आप विभिन्न Layers में अलग से Security Add कर सकते है जिससे Network ज्यादा Secure हो जाता है।
8) विभिन्न Companies के Devices आपस में Connect हो सकतें है और Communicate कर सकते है। क्योंकि वे समान OSI model के नियमों का पालन करते हैं।
9) OSI model विभिन्न Network system को एक साथ कार्य करने की सुविधा देता है। यह नियमों का एक सामान्य Sets एक प्रदान करता है।
OSI Model के Disadvantage (OSI मॉडल के नुकसान)
1) OSI model को समझना कठिन हो सकता है क्योंकि इसके कई Layers और Rules है। यह Beginners लोगों को Confuse कर सकता है।2) OSI Model पहले बना उसके बाद उसके Layers के लिए Protocols बने।
3) Protocols को OSI Model के अलग अलग Layers मे Fit करना थका देने वाला कार्य था क्योंकि प्रत्येक Layer के अपने अलग अलग कार्य होते है।
4) OSI Model केवल एक Reference Model है जिनका Real Life मे Use नही है।
5) OSI model को इसके Layers के कारण ज्यादा Resources जैसे Memory और Processing power की जरुरत होती है।
6) कई Companies OSI model, के सभी 7 layers को Use नही करते हैं जो इसे कम प्रभावी बनाता है।
7) OSI model एक सिद्धांत है। यह हमेशा वास्तविक नेटवर्क कैसा कार्य करता है इससे Match नहीं खाता है।
OSI और TCP/IP Model मे अंतर
दोनों Model मे अंतर जानने हेतु नीचे Link पर Click करे
FAQ
OSI Model क्या है?
The OSI (Open Systems Interconnection) model एक तरीका जिसके माध्यम से यह समझा जाता है कि Data विभिन्न Network में कैसे Move होता है।
OSI Model में कितने layers होते हैं?
OSI model में 7 layers, Physical, Data Link, Network, Transport, Session, Presentation, और Application layers होते हैं।
OSI का फूल फॉर्म क्या है?
OSI का पूरा नाम ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन है। इसे ISO ने विकसित किया था।
OSI Model में अंतिम तीन परतो का उद्देश्य क्या है?
OSI Model के अंतिम तीन Layers
Session, Presentation और Application layers होते हैं
1) Session Layer:
यह दो Devices के बीच Connection को नियंत्रित करता है। इस लेयर का मुख्य उद्देश्य Communication को Start, Manage और End करता है। और यह सुनिश्चित करता है कि सब कुछ सही क्रम में भेजा गया है।
2) Presentation Layer:
इस लेयर का मुख्य उद्देश्य Data को सही Format में बदलना है ताकि दोनों Devices इसे समझ सकें। यह लेयर Data की Security तथा उसके Size को छोटा करने जैसे कार्यों को भी संभालता है।
3) Application Layer:
यह layer Users और Applications को Network से connect करने मे मदद करता है। इसका मुख्य उद्देश्य जैसे Email, Web browsing और File sharing जैसे Services प्रदान करता है।
OSI Model परतो में क्यों टूटा हुआ है?
OSI model को layers इसलिए तोड़ा जाता है ताकि Networking को समझना सरल हो जाए। प्रत्येक layer के अपने स्वयं के कार्य होते हैं जो Network को Design और Fix करने में मदद करता है।
OSI Model में Data कैसे ट्रांसफर होता है?
OSI model, में Data transfer, layers में होते हैं। जब आप Data भेजते हैं तो यह Application लेयर से शुरू होता है।
यहीं से इस Data को भेजने के लिए तैयार किया जाता है।
Presentation Layer, Data को ऐसे Format में बदल देता है जिसे प्राप्त करने वाला Device इसे समझ सके।
Session Layer, दो Devices के बीच Connection को चालू तथा बंद करता है।
यह Communication को सक्रिय रखता है।
Transport Layer, Data को छोटे टुकड़ों में बांटा जाता है जिससे Packets कहते हैं। Network Layer, Network में Packets के Travel के लिए सबसे अच्छा रास्ता ढूंढता है।
Data Link Layer, Packets को Frame में बदलता है। Physical layer Data को signal में बदलता है जिसे Cables या Wireless भेजा जाता है।
OSI Model का Use कब करते हैं?
OSI model का उपयोग नेटवर्क बनाने तथा उसे ठीक करने के लिए किया जाता है। यह लोगों को यह समझने में मदद करता है कि Data Network में कैसे Move होता है तथा समस्याएं कहां हो सकती है।
यह अन्य लोगों को नेटवर्क के बारे में सीखाने के लिए भी अच्छा है। यह Model प्रदर्शित करता है कि कैसे विभिन्न लेयर्स एक साथ कार्य करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि विभिन्न Devices आसानी से Connect हो सकें और Communicate कर सके।
Important Remember Points on OSI Model
1) OSI Model मे 7 Layer से मिलकर बने होते है।
2) OSI Model के 3 Layer अर्थात Network Layer मे Router Operate होता है।
3) OSI Model का Transport Layer end-to-end Layer कहलाता है।
4) OSI Model के Physical Layer मे Repeater Operate होता है।
5) MAC (Media Access Control) Address Data Link Layer का Example है।
6) OSI Model के Presentation Layer मे Encryption तथा Decryption जैसे Function होते है।
7) OSI Model का Data Link Layer Error Detection जैसे कार्य करता है।
8) OSI Model का First Layer Physical Layer है।
9) OSI Model का Session Layer Dialog Control तथा Token Management हेतु ज़िम्मेदार है।
10) OSI Model के 7 Layers को Gateway Operate करता है।
11) OSI Model मे Ethernet Cable Physical Layer का Part है।
12) OSI Model के Transport Layer मे Data Segment के Form मे Travel करता है।
13) OSI Model के Physical Layer मे Topology आता है।
14) OSI(Open System Interconnection) Model ISO (International Organization for Standardization) ने 1984 में विकसित किया था।
15) OSI Model के Application Layer मे HTTP, FTP, SMTP, DNS, TELNET, NNTP Protocols होते है।
16) OSI Model के Transport Layer मे TCP तथा UDP Protocol होते है।
17) OSI Model के internet या Network Layer मे IP Protocol होते है।
18) OSI Model के Presentation Layer मे Data Compression, Encryption, Decryption, Translation जैसे कार्य होते है।
19) OSI Model Conceptual Model है।
20) UDP तथा IP Connectionless और TCP Connection Oriented Protocol है।
21) Data Link Layer मे Bridge कार्य करता है।
22) OSI Model कोई दो Network System मे Devices के बीच Data Communication को समझने हेतु Reference Tool है।
23) Transport Layer Port Address को Deal करता है।
24) Physical Layer मे Voltage, Wire Speed, Pinout Cable तथा Devices के बीच Bits के Move को Specify किया जाता है।
25) Physical Layer Transmission Medium के करीब का Layer है जो Physical Medium पर मे Bits के Movement से सम्बंधित है।
27) A Network का Host B Network के Host को Message भेजता है तब Router Logical Address को देखता है।
28) Data Link Layer Data Units को बिना Error के एक Station से दूसरे तक भेजने हेतु जिम्मेदार है।
29) Session Layer Communicate करने वाले Devices के बीच मे Synchronize, Maintains Establish करता है।
30) एक Host पर एक Process को Port Address के द्वारा पहचाना जाता है।
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